Pages

Saturday, April 24, 2010

best of Dushyant Kumar - path yahi hai

जिंदगी ने लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|

अब उभरते ज्वर का आवेग मद्धम हो चला है,
एक हल्का सा धुन्धलका था कहीं,कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले,रास्ता नाम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार,
अब तो पथ यही है|

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है|

यह लड़ाई, जो कि अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते, इरादों ने चढी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है|

No comments:

Post a Comment